माँड सके तो माँड, जगत की थाळाबेळी माँड

ताता स्वारथ पे मनवाराँ सैळी- सैळी माँड

कश्याँ डायजा का बासक ने विख फूँक्यो हिवड़ा में

अणब्याही क्यूँ रेहगी मेंहदी रची हथेळी -माँड

घणां माँड ल्या थँने रोवणा, स्याणापण ईं ओढ़्यां

अब कोय दन अटली मटली गाँठ गठेळी माँड

ऊँ ने हामळ भर दी सगळी मनवाराँ द्वासण कर दी

लड़कपणा ईं तज, गजलाँ सूँ सूँठ- सठैळी माँड

सौरम तो गरणावै छै- पण सरणाटो गूँजे छै

कुण की बाट उडीके छै या बंद हवेळी माँड

जोगन बण के कद तांई दन काटैगी ऊमर

उफण न्हँ ज्यावै चूल्हा माथै चढ़ी तपैळी माँड

स्रोत
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • प्रकाशक : कवि रे हाथां चुणियोड़ी