राम राज में रोळी है,

प्रजा बिच्यारी भोळी है।

लोकराज री अै मतपेट्यां

नेतावां री नोळी है।

मन में तो काळी करतूतां,

फकत पोशाखां धोळी है।

दोय दिनां री रुळी मजूरी,

किसी गरीबां होळी है।

कियां बराबर मजलां नापूं,

जूत्यां म्हांरी खोळी है।

नांव-नांव रा ठाकर रैग्या

डेरां मांय ड’बोळी है।

सासू जाणै हूं बेमाता

बहू गजब री गोळी है।

सुसरो है तो देख जतन कर

बहू कियां अडोळी है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ
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