पाप-धरम रो भारो देख,

कींकर करसी न्यारो देख।

गिरतां देख’र जश्न मनावै,

गांव-धण्यां रो धारो देख।

कुत्तो बणनों सो’रो कोनी,

जा तूं मिनख जमारो देख।

शिवानी नैं सोधणियां तुं,

सै सूं पैली हारो देख।

गोबर तक धणियाप गांव में,

च्यारूंमेर चकारो देख।

समै पलटतां संगी-साथी

ऊभा करै उतारो देख।

ईंटां बिच में भाटा राळै,

चजगारो चेजारो देख।

अंगरेजां रो ढाळो आवे,

तूं आं रो उणियारो देख।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ
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