मायड़ बोली मीठी लागै,

इणमें मिसरी घुळती लागै।

हिंवडौ है परदादी रौ आ,

दादौ जी ने बाली लागै।

मोती लागै इणरा आखर,

बोली सोना जैड़ी लागै।

मनुहारां सूं भरी थकी आ,

इमरत री सीसी लागै।

कूक-कूक नै कोयलड़ी भी,

इण बोली में गाती लागै।

इण बोली में बोल्या राणा,

मीरां री थाती लागै।

बास-बसी है इण री अंतस,

फूलां री घाटी लागै।

उणियारो है आपां रौ आ,

सांसा मांये रमती लागै।

इण रै बिन हां गूंगा, आपां,

आपां री वाणी लागै।

औळख है आपां री आ,

पण औळख गमती लागै।

ध्यान धरौ रे कीं तो भायां,

तौ भूखी-तीसी लागै।

स्रोत
  • सिरजक : आशा पांडेय ओझा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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