मूंडा सामै नीं भाळै जाणै क्यूं बेटी रौ बाप,

नीची गाबड़ करने चालै जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

कांई ठा कांई चिंता है कांई कांई है सोच,

बैठ्यो गोडा में सिर घाले जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

बेटी देणी धन देणौ अर देणौ पगड़ी रौ मान,

भांत—भांत री चिंता पाळै जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

अपणां बागां री बुलबुल चहके दूजां रै आंगण में,

अर सूनी आंख्यां सूं नाळे जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

नीं जिणा नै देख्या पैली नीं जिणा पे कीं बिस्वास,

बेटी कर दै उणा हवाले जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

सोरी व्हैला दोरी व्हैला जाणै कींया होवैला,

सोच सोच जिवड़ा नै बाळै जाणै क्यूं बेटी रौ बाप।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मार्च-अप्रैल 2007 ,
  • सिरजक : कविता 'किरण' ,
  • संपादक : लक्ष्मीकान्त व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै