मिंदरां में बाज्या करता बै ढोल-मजीरा आज कठै,

ब्यावां में अर त्यौहारां पर बणता सीरा आज कठै।

आज गैस रै चूल्है पर काची-पाकी रोटी बण री,

जां पर सेक्यां करता पैलां बै अब खीरा आज कठै।

छोंक लगाता दाळ-कढ़ी में महक फैलती बस्ती में,

हींग आज नकली मिलरी है बिस्या जीरा आज कठै।

राखी रै दिन, कदै भात ले भाई आया करतो हो,

उडीक रैया करती भैणां नैं बै अब बीरा आज कठै।

बड़ा-बुजुर्ग होवता हा जकां में भोत समाई ही,

मुसीबतां में भी ना डोलै बै अब धीरा आज कठै।

गोचर भूमि होया करती, कमी नींचै चारै री,

डांगर चरै मोकळो जी भर बै अब नीरा आज कठै।

हीरा मोती अर मणियां री बिकरी होया करती ही,

कोहीनूर सरीखा भारत में बै हीरा आज कठै।

बैराग त्याग भक्ति री मूरत, मस्ती में नाच्या करती,

‘मुन्नी’, शीला’ आज भोत पर अब बै मीरा आज कठै।

ढोंगी बाबा मठाधीश बण आश्रम रा संचालक है,

फक्कड़ सुधारवादी ज्ञानी संत कबीरा आज कठै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : विद्यासागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ