यो तो थारो सगपण छै

जे मनवाराँ द्वासण छै

च्यारूँ आड़ी अबखायाँ

जाणै जूण एक रण छै

सीस चढ़ाओ या माटी

चंदन ईं को कण-कण छै

तड़कै पूछैगो सूरज

क्है कांई सीरावण छै

थारो हेत मिल्यो जद सूँ

सगळी दुनिया बैरण छै

मौको छै अर मन भी छै

आज तोड़ द्यै जे खण छै

ऊँ बैरागण के बेई

गजल कनक की कामण छै

स्रोत
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • प्रकाशक : लेखक हाथां चुणियोड़ी