दियो जतरो पाण रा हकदार सगळा

क्यूं करो ऊंची पछै तलवार सगळा

अबै पसवाड़ो पवन फेर लीधो,

अलफता हय पर हुआ असवार सगळा

रीत रो कर रायतो रंग जमावण नैं

भिड़ रया बिन सीस बै झुंझार सगळा

पीड़ री परनाळ में पकिया पनपिया

भीड़ रा इज भाग बण की पार सगळा

जूण रा जंजाळ नै'ज जाणियो है

पूण कै आधी-अधूरी तार सगळा

अनिताई नै अजै तक अंगेजी ही

आज वै बणगा अठै खूंखार सगळा

करम तो हा फूटिया कदै सूं ई,

लूटिया इब आयनै दमदार सगळा

बगत री इण कुचरणी नै बाथ में लै

बाळियो हो डील सौ-सौ वार सगळा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वीरेन्द लखावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान