धरम री जड़ सांच में धर लावजै

काण पाछी बात री घर लावजै

मिनख देख्यां आप मुळकूं अठै

प्रीत पणघट बेवड़ो भर लावजै

भूख सूं मरबो अठै क्यूं हाल

दीन रै घर मोकळो जर लावजै

गुम गिया है नर अठै सूं लोहता

व्है जठै दूत थूं फर लावजै

पाप सूं 'मोहन बचावै आज थूं

लोक रै हिरदै सदा डर लावजै

स्रोत
  • सिरजक : मोहन पुरी