बहुवां नैं ना भली लगै, सासू जे सिर पर खड़ी,

सासू नैं भी नईं सुहावै, बहू पलंग पर पड़ी।

चोखी कोनी सील नींव में, माड़ो लेंटर चोणो,

खतरै री घंटी समझो, जे टूटी छत री कड़ी।

स्कूटर आगै कुत्तो आवै, हो ज्या अेक्सीडेंट,

दुखदायी है आँख में किरकिर, शूल पैर में गड़ी।

लेट्रिन में पाणी मुकज्या, स्कूटर रो जे पेट्रोल,

टाइम पर हो बंद दै धोखो, जे लैला री घड़ी।

बरसा में लेंटर चोंवै, गर्मी में बिजळी गायब,

बाढ़ डुबोवै जद बस्ती, ऊपर स्यूं लग ज्या झड़ी।

घर में अगर बीमारी आवै, इनकम टैक्स रो छापो,

भरयै बजार में चौड़ै-धाड़ै लगज्या जे हथकड़ी।

चढ़दी कला पड़ोसी दी बा, मन मन ना भावै,

गळी रा टाबर नईं सुहावै, खिड़की रै मारै दड़ी।

आयोड़ै री सेवा करणी पड़ै है मजबूरी में,

ओज्यूं ना मैमान बुलावै, धान जै खाज्या धड़ी।

माल पलीदा भावै चोखा लागै है पकवान,

टाबर थाळी फेंकै, रोज बणै जो पापड़-बड़ी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : विद्यासागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ