अवल आपाचार री नोटबंदी है

तन रै तार-तार री नोटबंदी है

धूड़ में मिल जाण नै माजनो जन रो

माल नै चटकार री नोटबंदी है

चार पईसो चाकरी में जीण कमायो उण

टूटता घरबार री नोटबंदी है

दुरुख में काढै दिहाड़ा जिकां खातिर नीं

छल-कपट फुफकार री नोटबंदी है

करी पूंजी बण’र मूंजी कामणी कातर

चिंत रै चितकार री नोटबंदी है

धन कियो धोळो मिनख नै पटक नै मोळो

मलफता मगरार री नोटबंदी है

दे थथोबो मेल मेळै आज तो थूं पण

काल कतलागार री नोटबंदी है

छोड़ सब धंधो खड़ो है लेंण में बंदो

नाव बिन पतवार री नोटबंदी है

कर सको नीं कोई ऊजर और नीं दावो

मांय-मांय मार री नोटबंदी है

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वीरेन्द लखावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ