कुण को कांई कसूर छै! दुनिया को दस्तूर छै।
रात्यूं चाल्या बार्हा कोसां, जद भी मजलां दूर छै।
अपणा की टांग खींच, अपणू ही पटकै
कड़ो अर कसेलो छोड, मीठो-मीठो गटकै
मूंडा ऊपर राम नाम अर भीतर सूं अमचूर छै
कुण को कांई कसूर छै!
हाड गाळ शीत अर लू का थपेड़ा
सहता रिया सोच अेक खेड़ा जठै चेड़ा
जीवतां का लागू सगळा, मरयां सूं कपूर छै
कुण को कांई कसूर छै!
जमीं अर मानवी को, नीठ गियो पाणी
चुप्पी साध मौन रहबो, सबसूं बढिया बाणी
भूख की रुखाळी माथै, सीळआ तंदूर छै
कुण को कांई कसूर छै।
आंख की रूसाई करै, सूई का-सा छेद
हंसबा मुळकबा में, गहरो-गहरो भेद
मन की रुलाई मार, हंसा तो जरूर छै
कुण को कांई कसूर छै!
मनख्यां का झुंड में भी, बेगड़यां की बास
अंधेरा का डर की मारी, दूबळो उजास
सिरजणहार थारो कठै छुप्यो नूर छै
कुण को कांई कसूर छै!