वागड़िया ना वागी हीं रे, दुनिया ने मँय ढोल

एकड़ो बकड़ो मांडो कोय, सोपड़ी लेज़ु खोल।

बाप बणी ने बेटा लाग्या, दरवा साती मोग

मोबाइल मयँ डय्या घालीं, लाग्यो केवो रोग

मानता नी हिं केवत केनी, करवू हूँ रे लोल

एकड़ो बकड़ो मांडो कोय, सोपड़ी लेज़ु खोल।

रूपयं पैसा हारु दौड़्या, मांड्यू ओंसू म्हेल

रिश्तँ नातं हलकी रयँ हीं, पारकं रेडीं तेल

ढउके ढउके रोवेगा ई, जाणे नी ज़े मोल

एकड़ो बकड़ो मांडो कोय, सोपड़ी लेज़ु खोल।

हेक्यो पापड़ भागो कारे, वाँटो कारे गोर

पारके भाणे ताको नकी, मारो मन ना सोर

हरी फरी ने घेरे आवो, धरती गोलम गोल

एकड़ो बकड़ो मांडो कोय, सोपड़ी लेज़ु खोल।

होनु जुई तमे घालो नकी, ओंनाँ ने मयं हात

मायड़ मयं बी करता रेज़ू, ठावी ठावी वात

बीज़े क्याँ एँ मलवा नी हीं, आवा मेटा बोल

एकड़ो बकड़ो मांडो कोय, सोपड़ी लेज़ु खोल।

स्रोत
  • सिरजक : महेश पांचाल 'माही' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी