मिनखा जलम मिलो मेरा जीवो, चूकै भव चौवरासी।

नुवो लेखौ हुवै मेरा जीवो, करिसी सो जीव पायसी॥

कीयो पावै जिसो करिसी, दोष काहु नहिं दीजिये।

सौदौ वसत अनेकों करिसी, समझ लाहो लीजिये॥

सवा दोढ़ा दुणा अनंता, ऐसो माल विसाहिया।

सुमत्य कुमत्य दोय मिनख जमारो पाइया॥

कुमति संग्य काम किरोध मेरा जीहो, हठ अहंकार कुलोभी।

लालच चोरी ठगाइ मेरा जीवो, कुमली कुचाल कुसोभी॥

कुसोभी मुख कुसुभ भाखै, सुभ सांच नै ऊचरै।

दान सील तप भाव नाहीं, दया हिरदै ना धरै॥

सिनान ध्यान भजन नाहीं, दोरै वासो दीजिये।

मिनख जमारौ असफल इण्य परै, कुमति संग कीजिए॥

सुमति संग्य सील संतोष मेरा जीहो, सुवचन साच सुभावा

किरिया भजन धरम मेरा जीवो, गुण गोम्यंद का गावा॥

गुंण गावै मुकति पावै, इन सेव ऊचरै।

उपगार सार अपार अहोनिसि, ध्यान हरि हिरदै धरै॥

मुगति माघ इण्य विध्य धावै, दान सुपहा दिजिये

रतन जलम संसार सागर, सुमति सुसंग कीजिये॥

औसर मिनख जलम मेरा जीवो, बारों बार पावै।

हरिजन पारय लंघ्या मेरा रहे जीहो,बोहड़य इण्य खंडि आवै॥

इण्य खंडि आवै करै केला, सदा कोड़ सुहावणा।

हूर कामण्य करै केला, रतनगढ़ रत्न आवणा॥

स्रोत
  • पोथी : विश्नोई संत परमानंद बणियाल ,
  • सिरजक : परमानंद बणियाल ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल ,
  • संस्करण : प्रथम
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