निळटइ दीपै नूर, तेज तपै तनि तो तणै।
सहस कै ऊगा सूर, वदनि तिहारै, वीसहथि॥1॥
टळवळतां द्यइ टेक, भावठ भांजै भगवती।
ऊंची आस अनेक, वहिली पूरै वीसहथि॥2॥
ठौड नहीं तो ठाम, जिहां नहीं तूं जाळपा।
नवा-नवा करि नाम, वसै सदा तूं, वीसहथि॥3॥
डमरू डाक डमाल, घणे घमंते घूघरे।
फिरि-फिरि भरती फाल, बाघ चढणि तूं, वीसहथि॥4॥
ढमकंते ढोलेह, घणे दमामे घूमते।
वरवंते बोलेह, वेढी बंक सूं वीसहथि॥5॥
नयणे निद्रा रूप, वाचा रूपा वयण तूं।
पिंड-पिंड पवन सरूप, वपि-वपि दीसई, वीसहथि॥6॥
तरुण तुहारौ तेज, ससि जिम सीतळ सेवकां।
हितुयां दाखै हेज, विनां वहंता वीसहथि॥7॥
थिर कीधा तैं थान, महल महागिरि मंदरे।
गिणी न आवै ग्यान, वसति तुहारी वीसहथि॥8॥
देवी तो दरबार, सुर ऊभा सेवा करै।
देखण तो दीदार, वारू मांगै, वीसहथि॥9॥
धरै हियै तो ध्यान, एक-मनां जो ऊळगै।
महिपति दे बहु मान, वचन फळै त्यां, वीसहथि॥10॥
रसणि वसै रस रंग, कवित कहाथै कवियणा।
आई तूं उछरंग, वाणी रूपे, वीसहथि॥11॥
लांमा मेटै लेख, भला करै तूं भगवती।
राखै भगतां रेख, वांन वधारै, वीसहथि॥12॥
वदन सुधारस वावि, नेह सरोवर नयण तो।
बांहां ग्रहे बोलावि, वयण अमीरस, वीसहथि॥13॥
सरण हिमै तो सेव, माता हूं मूकूं नहीं।
हित सूं सामणि हेव, वांसै करि दै, वीसहथि॥14॥