आखँ नं डाबरं भरी ग्या

वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

विशारता कईंक ते तमे

दु:ख ना डोंगरा ढरी ग्या।

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

नानकं भाईयं नो सहारो

लाड़की बुन नो वीरो व्हालो

सोरं बापडं दादो डोकरो

खुशिये हेत्तं नी सरी ग्या।

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

हाथं मय विवं नी मेहंदी

पीटी हरदी टिली फुंदी

कंकु हिन्दूर माँग भरीं ज़े

लुई ना खोबा मयं ढुरी ग्या।

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

आई नी आँख नो तारो दीवो

हतो बापा नो बेटो व्हालो

दीवारी राखी तेवार सुडी ने

खून नी तमे होरि रमी ग्या

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

पाँस मईने गाम में आव्यो

हली मली ने पासो साल्यो

तिरंगा मयं लपटी ने मोकली

कारज़ं सबनं केम वेतरी ग्या

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

दैत्यं ना अवतारे आवी

मोरं मयं घोंपी छरी है

हेत्तं नी सातिये माते हुवोर

घटिये त्रास नी दरी ग्या।

आखँ नं डाबरं भरी ग्या वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

विशारता कईंक ते तमे

दु:ख ना डोंगरा ढरी ग्या।

आखँ नं डाबरं भरी ग्या

वैरी ऐम हूँ करी ग्या।

स्रोत
  • सिरजक : महेश पांचाल 'माही' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी