मुळक—मुळक, तू मुळक—मुळक,
नान्हीं बाई मुळक—मुळक
तू मुळके तो मन का मोती, रंग बिखेरे रळक—रळक...
सूरज—चांद—सितारा सारा,
ईं मुळकण पे वार द्यूँ,
जतनो पाणी समदर में छै,
थानें उतनो प्यार द्यूँ,
बांच लियो म्हारी आंख्यां ने,
सुख थारी ईं मुळकण में,
सुरग समेट्यो धरती ने,
थारी किलकारी म्हें इमरत मिलै छै ढुळक—ढुळक...
साँसा में सौरम मंडगी
अर सपना होग्या सब रंगीन,
थारा आ जाबा सूँ धरती
होगी ज्यूं सुख को कालीन,
तीज—तिंवार हरखबा लाग्या,
गीतां सूँ जग गरणायो,
चांच मढ़ा सोना सूँ कागो,
घर की ड्योढ़ी पे आयो,
पग लेबां लागी उम्मीदां, चाल पड़ी तू ठुमक—ठुमक...
पुण्यां की पोथी पढ़जै
अर पुण्यूं बणके रह्जै तू,
थारी मुळक कदी न्हं जाणै,
आंख्यां सूँ बहता आँसू,
ज्यां की गोदी में तू झूली,
सदा राखजै वां को मान,
म्हां सब की किस्मत का सगळा
सुख थानें दे दे भगवान,
जिनगाणी में थं ई मिले, मन की मनवारां मटक—मटक...