तने भणते ने गणते घणी वार लागी,

हैत्ती उमर वीतीने तारी बुद्धि जागी।

घणं कर्‌यू भाजगेंड़ ने हैत्ती वाड़े ठीकी ग्यं,

कउवारा मंय दाड़ा काड्या, जनम जमारा दीखी ग्यं।

मरती लगण खिचड़ी खाइने भूख लागी,

हैत्ती उमर वीतीने तारी बुद्धि जागी।

पाप घणं थ्यं, पुण्ण घणं पण, लेखा केने जोया नें,

धतंग घणां थ्या मरी घणां ग्या, हाचाचूक रोया नें।

रोया तारे जारे के जारे बैठा टांटियां भागी,

हैत्ती उमर वीतीने तारी बुद्धि जागी।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (मई 2023) ,
  • सिरजक : महेश देव भट्ट ,
  • संपादक : मीनाक्षी बोराणा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर