तन रै घावां नै के देखै? मन रा घाव घणा गै’रा है।

सांसां री के बात करै? अंगार उसांस बण्या सै’रा है।

गुड़-लिपटी बातां है बारै, भीतर भाव भरह्या जहरीला।

चाम देख के रीझै कोई? जद दिमाग रा पुरजा ढीला

देव-दिखावै में, दानव रा दुख-देवाळ छिप्या चै’रा है।

तन रै घावां नै के देखै? मन रा घाव घणा गै’रा है।

पड़ी सामनै बिछी सफळता, आळस चिणगारी बण फूंकै।

फूल ओट ले, खोट खड़ी है, कांटो चुभणै में कद चूकै?

लंबी कथा हुई दुविधा री, पण जग-कान बण्या बै’रा है।

तन रै घावां नै के देखै? मन रा घाव घणा गै’रा है।

पै’र साच रा गा’बा, चोड़ै खड़यो झूठ मन में मुळकै है।

बैठ न्यारा री कुरसी पर अन्याय देख लै के पुळकै है

खुलां बारणां बसै बुराई, अठै भलाई पर पै’रा है।

तन रै घावां नै के देखै मन रा घाव घणा गै’रा है।

स्रोत
  • पोथी : उजाळो थपक्यां देरयो ,
  • सिरजक : मुनि बुद्धमल्ल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवम संस्कृति जनहित प्रन्यास