कै तो पवन तेज कै कम, साथ न देवै यो मौसम।
कस्यां उड़ै रे म्हारी गुड्डी, कागज घणो नरम॥
मन में आवै अलंग्यां चौड़ूँ
चाहूँ जठी गगन में मौड़ूँ
ईं पतळी सी नरम डोर सूँ
धरती आसमान ने जोड़ूँ
आज नजर की भींत लांघ म्हूँ तोड़ूँ कई भरम।
आस पास भारी छै टक्कर
धारदार मांझा का लश्कर
म्हारी नन्हीं गुड्डी आड़ै
भांवरदार हवा को समदर
कब तक और चाबनी पड़सी रोड़ां की च्युंगम।
जब भी म्हनै भाग अंदाज्यो
गरगी गुड्डी उळझ्यो मांझ्यो
धुंद पड़ी आंधी आई कै
पाणी बरस बादळो गाज्यो
पण म्हूँ हार नहीं मानूँगो जब तक छै दम—खम।
घातां इक दिन सभी कटैगी
बाधा हाळी धुंध छंटैगी
चंता मत कर म्हारी गुड्डी
चाहूँ जतनी देर, डटैगी
म्हूँ हरखूँ जब तू नाचैगी अंबर मैं छम—छम।