कळियां चटकी, फुलड़ा मुळकया,

नवी कूंपळा, मोती रळक्यां,

रुत आई तो मांदा पड़ग्या वै अम्बवा रा

मोर-कोयल्यां गूंगी होगी रै।

रंग बसंती तस्कर लेग्या

मद लैग्यी मैंगाई रे

खुसबू सगळी पेट चाटग्या

जाचक बण्यो कसाई रे।

सूख्यो रुंख कदी ना सरसै

दात्तारी मूंगी होगी रे॥

सूखा खेत गळगळी आंख्यां,

हैलो पाड़ै भूखी आंतां।

फाटी जावै चूंदड़ बासंती-

उण गौरी री लाज बचांतां॥

किण रो गाड, भरोसो किणरो

पौन भी लूंगी होगी रे॥

मनख पणो, मजदूरण म्हारो

थूं राजा रितुवां में सारो

थारी अगवाणी फूल करै है

म्हारी किस्मत गारो ही गारो

भूज्यां बिण, झूझार कस्यां व्है

मौत भी चूंगी होगी रे॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : राधेश्याम मेवाड़ी ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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