औरत–

आई सावण की रुत स्याणी

महिमा जावै नहीं बखाणी

ऊभा हरिया खेत निनाणी

म्हारो राजी हुयो छै मन माळी

ढोला चालो क्यूं नैं खेत की रूखाळी॥

मर्द-

गौरी सोच मना कै मांई

थारी अक्कल क्यूं बोराई

करस्यूं जा’र एकलो कांई

दोन्यू हाथां सूं बाजै छै प्यारी ताळी

आपा जोड़ा सूं चालालां रखवाळी॥

औरत-

म्हारै धन्धो घरां घणो मैं कोनै बैठी ठाली

नान्हा मोटा टाबर-टोळी गोद्यां खेलै लाली

धन्धो छोड घरां को चाली

भूखी गाय भैंस गोपाली

किंया भरसी दूध दुहाली

रात्यूं खूंटा नैं खींचैली राती छ्याळी

ढोला चालो क्यूं नैं खेत की रूखाळी॥

मर्द–

गाय भैंस बकरी चर लेसी घणी बड़ी चरणोट

टाबरिया सागै ले चालां छाछ राबड़ी रोट

कोरै कळसै ठण्डो पाणी

भरलै झोळी में गुड़धाणी

खुरपो हाथ उठा अगवाणी

होजा नखरा क्यूं करै छै नखराळी

आपा जोड़ा सूं चालालां रखवाळी॥

औरत-

चालै ठण्डी भाळ बालमा झीणी सी पुरवाई

काळो बादळ घूमर घालै बादी बैरण आई

आखो अंग दर्द सूं दूखै

दिन-दिन कटी बेल ज्यूं सूखै

जिवडो नींबूड़ा सा चूंखै

जाणै किंया कांई देखूंली दीवाळी

ढोला चालो क्यूं नैं खेत की रूखाळी॥

मर्द-

सारी बातां समझूं थारा जाण गयो सब ढंग

क्यूं तो ठाकुर ठेठ बावळा क्यूं पी लीनी भंग

थारा थोथा ढंग इरादा

थोड़ो रोग फैल रै ज्यादा

बैरी बुरी करी रै दादा

आछी ल्यायो रै लुगाई चरताळी

आपा जोड़ा सूं चालालां रखवाळी॥

औरत-

दादा कै क्यूं दोस लगाओ थे खुद परणी देख

मुळक-मुळक रोजीना कहता तूं लाखां में एक

अब क्यूं थांनैं खारी लागी

कैंया धरण ठिकाणै आगी

अक्कल भांग-भूंगडा खागी

झगड़ा झेलो छो रोजीना दे दे गाळी

ढोला चालो क्यूं नैं खेत की रूखाळी॥

मर्द

तूं म्हारी गणगौर गौरड़ी घणी कीमती लाल

म्हारै जोड़ै बैठ बहल में खेत निनाणी चाल

आळस करै हमेसा हाणी

मेहणत मौजां ले जिन्दगाणी

मीठी बोल भंवर सूं बाणी

जियां बागां में बोलै छै कोयल काळी

आपा जोड़ा सूं चालालां रखवाळी॥

स्रोत
  • पोथी : भंवर-पुराण 'बिरहण' ,
  • सिरजक : भंवर जी 'भंवर' ,
  • प्रकाशक : समर प्रकाशन