घूंघट वाळी अरी, सुण नखराळी

रूप की रूपाळी म्हारी केसर की कळी

सासरिये ले चालाँ, आओ चालो तो सणी॥

छैल छबीला साजन प्यारा

निराळा नखराळा म्हारा / केसरिया भरतार

चीलगाड़ी में ले चालो तो चालूँ थांकी लार॥

चीलगाड़ी में बैठा द्यूँ असी कांई बात छै

आज क्हाल तो लाड़ी सा ईं धन्धा में ही नाम छै

झगड़ा का बौपारी आपाँ, तस्करी को काम छै

झुक झुक करै सलाम सारा गांव की गळी॥

सासरिये ले चालाँ...

आग लगावो अस्या नांव के छोड़ो खोटा काम जी

खून की होल्यां खेलबो, छोड़ो बरायां का काम जी

भारत माँ का बेटा सारा हिन्दू मुस्लिम ईसाई

अस्या धन के आग लगाओ जे मारे नतकै भाई

मनखपणो अपणाओ तो चालूँ थाँकी लार

पगां पगां ले चालो म्हूं चालूँ...

खोटा धन्धा तजूँ गौरड़ी बिगड़ जावैगा ठाठ

परदा तकिया छोड़कै, पडै सोवणों खाट

मेहनत की आछी दो रोटी रसगुल्ला द्यूँ लात

बेचै जो ईमान बालमा ऊँ की औछी ज्यात

थैं तो चतुर सुजान म्हारा जीव री जड़ी

सासरिये ले चालाँ आओ...

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : जगदीश निराला ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
जुड़्योड़ा विसै