सूतो कांई, जाग संकर्‌या

लागी लाय भाग संकर्‌या।

याद थँनै छै, जाणू छूँ म्हूँ

असी कसी कुण की करतूताँ

कुण नै मारा कुण नै डाँटां

कतना नांव बता कूंतां,

वै पराणा राग संकर्‌या

न्याळा—न्याळा भाग संकर्‌या।

जाणूँ छूँ बरडा को डूँगर

खेत बना द्यो फसल उगाई

कस्यो लेख विधाता लिखग्या

थारै हाथां फाड न्हँ आई

साँस खा ठाम संकर्‌या

मरद छै थारो नांव संकर्‌या।

धरती छै फैरूँ नपजैगी

थारा सारा दु:ख हर लैगी

कपटी का सगळा बाडा ईं

या मट्यामेट करैगी।

ईं की माटी फाँक संकर्‌या

लाम्बा थारा हाथ संकर्‌या।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान