सखि हिलमिल मंगल गावो,

बनारै के उबटणों मसलावो।

चावल पीस कपड छण करज्यो,

केसर हलद मिलावो।

अतर गुलाब केवड़ा जल में,

सोना कै थाल धुलावो॥

दासी लै जल झारी ठाडी,

अब असनान करावो।

सावित्री गिरिजा मिलि बैठी,

गावत मोद बधावो॥

कौसल्या'रू सुमित्रा जो आवो,

केकई साथ सिधावो।

चूडी सुरंग रतन मंगवावो,

मेवा सूं गोद भरावो॥

सात सुहागन तेल चढ़ावो,

सब मिल मंगल गावो।

कहत ''समान'' कंवर दसरथ पर,

न्यौछावर करवावो॥

स्रोत
  • पोथी : लोक में प्रचलित ,
  • सिरजक : समान बाई