साजन सावण की सुरंगी आई बहार
पपीहो बोलै बाणी रस की
अब तो आगो थारी तीज को करार
आजा रै म्हारी कोन्या बस की
सूनी सेजां सूखू भोळी बाईसा का बीर
सासरा को कांई सुख जाऊंली म्हारै पीर
थारा वादा झूंठा खींचै पाणी पर लकीर
बढ़ता ही जावै छै जियां द्रोपदी को चीर
नो दुस्सासन भी मान लीनी हार
सभा में सबकी आंख मिचगी॥
परसूं कै दिन आगो फूली परभाती को बींद
एकली सेजां में मन्नैं कियां आवै नींद
उबीणी बछेरी डोलै कसले क्यूं नैं जींद
सावण को म्हनो छै जोबन झूला ऊपर हींद
आयो-आयो रै यो तीज को त्यौंहार
हिण्डोळा ऊपर मार मचकी॥
जोबण यूं गरणावै भरगो भोपाजी में भाव
मार मरोड़ो चढ़गो म्हारै तेजरी को ताव
चालणी सा छेद म्हारा काळजा में घाव
छोड़गो बेदरदी करदी पंसेरी की पाव
थारी फुलवारी नैं सींच रै गंवार
तिसाई काची कोंपळ पिचकी॥
बडा-बडेरा बूढ़ा-ठेरा सांची कह छै लोग
दाख पकै जद ऊठै कण्ठा कागला कै रोग
थोड़ा जळ की माछली करमां का भोगै भोग
करी दुहागण दे दीनो तू भरी जवानी जोग
थारी याद में फिक्कर को पहर्यो हार
पीडा की मेंहदी हाथ रचगी॥
काल खेत की मेरां-मेरां गई चराबा ढोर
देखतां ही ऊठी म्हारा हिवड़ा में हिलोर
आंख्या में आंसूड़ा आगा करबा लागी गौर
मोरणी कै आगै-आगै निरत करै छो मोर
थारी ओळ्यूडी आई रै भरतार
रोई रै रात्यूं चाली हिचकी॥
मन बहलावण धन को जांवण हर म्हनैं आ जाय
पण आमां की तिस आमली हरजाई सूं कद जाय
साजन बिन कोरो धन दूणो जोबन जोस जगाय
आग में धी गेर्यां तो भभकैली बैरण लाय
सारो छैल भंवर बिन सूनो सिणगार
मर जाऊं प्याली पी’र बिस की॥