ओउम एक विसन की माया, इरख सूं दोय लखाया।

हिन्दू कहै ब्रह्मा एक है, दुतिया नाम कोई।

अलाह अलेख राम रहीमा,यो भी इचरज होई।

मुसलमान कह रिबिल आलमीन, मुसलमीन नहिं सोई।

खाल्यक खुदाय दोय करि ध्यावै, योंह अंदेसा जोई।

वाद विवाद अहूं ईरखौ, जोर जरब घट माहीं।

वेद कुराण दो राह बताया, कण एको दोय माहीं।

दया धर्म हिन्दू बतावै, करै महर मुसलमाना।

गलो काटै झटकै सूं मारै, भेद कही नहिं जाना।

क्या हिन्दू क्या मुसलमाना अर्थ खोज्यां गति पावै।

परमानंद दास इस हरि पुर की, एक मन एक चित ध्यावे॥

ऊं स्वरूप विष्णु की माया एक है, केवल इसे अवश्य दो लिखते है।

हिंदू ब्रह्म को अद्वैत रूप एक कहते हैं, द्वैत नाम का कोई तत्व ही नहीं है अल्लाह, अलेख, राम ,रहीम कहना भी आश्चर्य है तत्वत: यह सब एक है। भिन्न-भिन्न कहने पर ही आश्चर्य होता है। मुसलमान कहते हैं कि अल्लाह को यदि ब्रह्मांड में रमा हुआ कहे तो वह मुसलमान कहलाने का अधिकारी नहीं है। वह संसार अल्लाह को अलग-अलग करके मानते हैं,यही एक अंदेशा है। वाद -विवाद अहंकार, ईर्ष्या, जोर जबरदस्ती ही मन में भरे पड़े हैं। वेद या कुरान ने अलग-अलग दो रास्ते बताए हैं किंतु सार की बात दोनों में एक हैं दो नहीं। दया ही धर्म है ऐसा हिंदू कहते हैं। मुसलमान कहते हैं मेहर - दया करो।फिर भी दोनों ही पशुओं का गला हलाल झटका मारकर काटते हैं। दोनों ने ही दया का रहस्य नहीं जाना। क्या तो हिंदू और क्या मुसलमान। दोनों ही जब धर्मों के भीतर रहस्य को जान लेते हैं तब वे मुक्ति रूपी गति पाते हैं। परमानंद का कहना है कि जिस भी दास को हरिपुर में वास करना है एक चित्त से हरि का स्मरण करने वाला ही मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

स्रोत
  • पोथी : विश्नोई संत परमानंद बणियाल ,
  • सिरजक : परमानंद बणियाल ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल ,
  • संस्करण : प्रथम
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