रात करें रखवाळी, काटै परभात रे

चंदा कै खेत खड़ी तारां की साख रे

बादल में रंग ढुळै जळ जावै रूप रे

सूरज को जीव बळै धरती ले धूप रे

कुण सेजां माण रही, कुण को सुहाग रे

चंदा कै खेत...

हीरां की खान खुदै रह जावै धूळ रे

माटी को प्राण पी’र हांसै छै फूल रे

जग भर नैं जोत मिलै दीपक नैं राख रे

चंदा कै खेत...

मन कुण पै वार दियो, तन कुण कै हाथ रे

कोई को पळ-पळ छै, कोई की रात रे

हथळेवै चेक दियो मेहंदी को दाग रे

रात करै रखवाळी काटै परभात रे

चंदा कै खेत खड़ी तारां की साख रे

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : अनिल गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम