राजा दसरथ जी के दुलारे!
कंवर दोनो आये(सा)अयोध्या बारे॥
जनक राज के जग्य रच्यो है,
सोहत राज दुवारे।
राक्षस मारण यज्ञ सुधारण,
भोम उतारण भारे॥
बड़े बड़े भूप बड़े बड़े जोधा,
सरब वीर पचहारे।
रावण सरिसा सारा पचिया,
धनुष उठत नहीं धारे॥
भरी सभा में जनक ह्यै ठाड़े,
बोलत वचन करारे।
सारा मिलकर धनुष उठावो,
मै अपनों पन हारे॥
ऐसे वचन राम जब सुनिये,
कटि पीताम्बर धारे।
बांयां कर सूं धनुष उठाकर,
टूक टूक कर डारे॥
लेकर माला सियाजी निकसी,
सुन्दर बैन उचारै।
आ बरमाल राम गर डारूँ,
सखियाँ मंगल गारे॥
ठौर ठौर बहु बाजा बाजत,
छाजत न्यारे न्यारे।
कहत ''समान'' कुंवर दसरथ को,
रघुकुल रूप सुधारे॥