पारवती सुत शंकर नंदन अर गिरा पद्मासण आजो।

देव गजानन शारद् मां झट सूं घट आसण आण बिराजो‌॥

लोक त्रिलोक मनावण मंगळ नारद पेल विनायक गावे।

ज्ञान विज्ञान कला कलमा परकाश सरस्वती वेद बतावे॥

मीर कबीर रहीम रमे अर मानस में तुलसी पधरावे।

आखर मं जस आंचळ सूं जग जोत जळे महमां महकावै॥

मां बसवास गणेश सदा सरदा चरणां रज ठोर बताजो।

देव गजानन शारद् मां झट रो घट आसण आण बिराजो॥

मां ममता मधुमास हियो चरणामत देव अमंगल हारी।

नाथ संदूर चढ़े बुध ओसर मात् उजास सदा दमकारी॥

कांकड़-कांकड़ दोनन की धरती पर ज्ञान धजा लहरारी।

दोनन की शरणां मम जीवण पालणहार पिता महतारी॥

छौड’र यों कमलासण मां गणराज कृपा कर दास बणाजो।

देव गजानन शारद मां झट से घट आसण आण बिराजो।

दास करे अरदास प्रभो जननी पग सूं भव पार कराओ।

दे वर नाथ धरो कर माथ मटा अंधियार हियो उजळाओ॥

मूषक वाहन पे गणनायक मां मति हंस विराज’र आओ।

आणंद मांड रैयो रस आंसद आंणद ने सत् गेल बताओ॥

वास बणा कर छंद दिशा दस रोशन बारह मास कराजो।

देव गजानन शारद मां झट सूं घट आसण आण बिराजो॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 2005 ,
  • सिरजक : आनन्द ‘हजारी’ ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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