पधारो फिर म्हांकै गणराज!

फिर गणराज सिखावो म्हांनै, पंचराज को रस्तौ।

म्हांका राज काज म्है करांला, सासन होवै सस्तौ॥

पांच पंच में हार्‌यां जीत्यां, कुण नै आवै लाज?

पधारो फिर म्हांकै गणराज!

जंगळ खानां आप संभाळां, करां खड़ा उद्योग।

गांव गांव नै चमन बणावां, वांको लेकर भोग॥

बाधा विघन हर सब म्हांका, पड़ सत्रु पै गाज।

पधारो फिर म्हांकै गणराज।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थानी कवियां रौ योगदान ,
  • सिरजक : विजयसिंह पथिक ,
  • संपादक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रदेश कांग्रेस शताब्दी समिति, जयपुर
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