कैड़ी भरमाई जगती, उळझी परबस रीतां में

आप आपरा भरम लियोड़ा पीड़ परोटै गीतां में।

भाग लिख्योड़ी ओळी बांचण

जाणै कितरा जतन करै,

पण खुद नैं बतळावण खातर

नाय कदैई ध्यान धरै

जलम जात बड़भागी घर रा, सगळी खोटां नीतां में,

आप आपरा भरम लियोड़ा पीड़ परोटै गीतां में।

सदा कळै री कूंची लागै

मन मिंदरियै रै ताळै,

कुबदायां रै मांय मिनख अै

जलमां यूं जूणा गाळै

स्यात मिळै धन गड़ियोड़ो मन बणती-धुड़ती भींतां में,

आप आपरा भरम लियोड़ा पीड़ परोटै गीतां में।

झूठ-मूठला छळ-छंदां में

रास आयग्यो है जीणौ,

स्वारथ रै संसार टंगीजै

भाव तणो पड़दो झीणौ।

सदियां रो धारो ओजूं पळै-पोसै रीतां में,

आप आपरा भरम लियोड़ा पीड़ परोटै गीतां में।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : सत्यदेव संवितेन्द्र ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ