श्री शांतिनाथ केवळी रे, व्यावहार करे जिनराय।
समोवसरण सहित भल्या रे, वंदित अमर सु पाय॥
द्रुपद नरनारी सुख कर सेवियो रे, सोळमो श्री शांतिनाथ।
अविचल पद जे पामयो रे, मुझ मन राखो तुझ साथ॥
सम्मेद सिखर जिन आवयोरे, समोसरण करी दरू।
ध्यानवनो क्रम क्षय करीरे, स्थानक गया सु प्रसीध॥
श्री घोघा रूप पूरयलु रे, चन्द्रप्रभ चैत्याल।
श्री मूळसंघ मनोहर करे, लक्ष्मीचन्द्र गुणमाल॥
श्री अभेचन्द पदेसोहे रे, अभयसुनंदि सुनंद।
तस पाटे प्रगट हवोरे, सुरी रत्नकीरति मुनी चंद॥
तेह तणा चरण कमलनयनिरे पंचकल्याणक किध।
ब्रह्म जयसागर इम कहे, नर नारी गाउ सु प्रसिद्ध॥