पै’लो सवाल तो रोटी है।

हल हुवै नहीं जद तांई ओ, बाकी सै बातां खोटी है।

पै’लो सवाल तो रोटी है।

सींचै जो रगत-पसीनै स्यूं, बां स्यूं धरती क्यूं रूसी

अन नै जो देव गिणै, पूजै, बां री ही रोटी क्यूं बूसी

जो सीधा-सादा, नम्या-झुक्या, बां पर क्यूं दो दो लद ज्यावै

क्यूं सींग मारणै वाळां री हो रई चामड़ी मोटी है।

पै’लो सवाल तो रोटी है।

फुटपाथां पर जो मरै-खपै, के मोल भूंडियां रो होसी

लिछमी रा बेटा दुजा है, बां री तो है मां संतोसी।

तपती हो तवै जिसी धरती, भांऊ ठण्डी हो हेम जिसी।

बां रै जीणे में फरक किसो दूजां रै हाथां चोटी है।

पै’लो सवाल तो रोटी है

मै’नत रो माथो झुक रयो है, बातां रो खड़यो हिमालो है।

करतब बूंटां नीचै दबरयो, अड़रयो इधकार रुखाळो है।

अणहोणीः होणी बण बैठी, सैबोलै, सुणै नहीं कोई।

दूजां रै सिर पर पग रोप्यां, सै बिठा रया निज गोटी है।

पै’लो सवाल तो रोटी है।

स्रोत
  • पोथी : उजाळो थपक्यां देरयो ,
  • सिरजक : मुनि बुद्धमल्ल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास