फागण मनभावण बांका छैल बजावै ताळी रै

हिये हरख घर-घर में घूमर नांच करै नखराळी रै

फागण मधुमास रंगीलो

घर-घर मांहि मचावै धूम

बूढ़ा बाळक ज्वान सभी का

मन मस्ती सूं जावै झूम

गळबहियां सी डाल लिपट यूं

रहीं बेल तरूवर कै लूम

नई नवेली अलबेली ज्यूं

साजन को मुख लीनो चूम

साज सुरीला बाजै घर घर गावै गीत धमाळी रै

हिये खरख घर-घर में घूमर नांच करै नखराळी रै॥

हर बस्ती हँसती सी लागै

फागण रस की पड़ै फुंहार

धानी चूनड़ ओढ्यां धरती

दुल्हन ज्यूं साजै सिणगार

पीव गया परदेसां धण सूं

कर होळी को कौल करार

कामण की कजरारी आंख्यां

बाट बलम की रही निहार

हिवड़ै ऊसर खेत हुवैली पीव मिल्यां हरियाळी रै

हिये हरख घर-घर में घूमर नांच करै नखराळी रै॥

खेतां खड़ी सुहागण सरसूं

पाळा फूल खिलावै रै

खेत धणी को मन राजी कर

नागण ज्यूं लहरावै रै

धान पक्यां जौ गेहूं बाळियां

सोनो सी चमकावै रै

बूंट चणां का फळै घणो मन

करसां को हरसावै रै

ऊठ संवारै चाल्या हाळी कांकड़ खेत रूखाळी रै

हिये हरख घर-घर में घूमर नाच करै नखराळी रै॥

बाजै चंग मृदंग झांझ डफ

फागण छैल रचावै फाग

होळी की मनुहार कामण्यां

गावै गीत सुरीली राग

होळी भरै खुसी की झोळी

मन का मैला धोवै दाग

बैर-भाव नफरत कचरा नैं

राख करै होळी की आग

रंग अबीर गुलाल उड़ा सब प्रीत परस्पर पाळी रै

हिये हरख घर-घर में घूमर नाच करै नखराळी रै॥

स्रोत
  • पोथी : भंवर-पुराण 'बिरहण' ,
  • सिरजक : भंवर जी 'भंवर' ,
  • प्रकाशक : समर प्रकाशन