तन ही राम मन ही राम ,राम हृदय रमि राखी ले।
मनसा राम सकल परिपूरण, सहज सदा रस चाखी ले ।
नैनां राम बैनां राम , रसना राम संभारी ले।
श्रवणां राम सन्मुख राम, रमता राम विचारी ले।
श्वासैं राम सुरतैं राम,शब्दैं राम समाई ले।
अंतर राम निरंतर राम,आत्माराम ध्याई ले।
सर्वैं राम संगैं राम, राम नाम ल्यौ लाई ले।
बाहर राम भीतर राम, दादू गोविंद गाई ले॥