भाई रे , ऐसा सतगुरु कहिये, भक्ति मुक्ति फल लहिये।
अविचल अमर अविनाशी,अठ सिधि नव निधि दासी।
ऐसा सतगुरु राया, चार पदारथ पाया।
अमी महारस माता, अमर अभय पद दाता।
सतगुरु त्रिभुवन तारै, दादू पार उतारै॥