अलह राम छूटा भ्रम मोरा॥
हिंदू तुरक भेद कुछ नाही, देखूं दर्शन तोरा।
सोई प्राण पिंड पुनि सोई, सोई लोही मांसा।
सोई नैन नासिका सोई, सहजै कीन्ह तमासा।
श्रवणों शब्द द बाजता सुणिये, जिह्वा मीठा लागै।
सोई भूख सबन को व्यापै, एक युक्ति सोइ जागै।
सोई संधि बध पुनि सोई, सोई सुख सोइ पीरा।
सोई हस्त पांव पुनि सोई, सोई एक शरीरा।
यहु सब खेल खालिक हरि तेरा, तैं हि एक कर लीना।
दादू जुगति जान कर ऐसी, तब यहु प्राण पतीना॥