अँधारी रात मत जाणी नवो सूरज उगातो जा।
जठै इंसान रा आँसू,बठै मोती लुटातो जा॥
पूरबलै पुन्न सूं जग में अमोलक जीव जद आयो।
उदर में सीप में मोती कंवळ ज्यूं कीच उपजायो॥
बजारां बीच हाटां में कठै बा ताकड़ी सांची।
कदर जंवरी करै जद आदमी रो मोल हद पायो॥
उजाळी कूख सीपी री मिलण रा सुर सजातो जा।
जठै इंसान रा आँसू, बठै मोती लुटातो जा॥
धरा री माँग सूनी है कवि रा गीत बागी है।
भरम री बात सागी है कळी है कंठ आगी है॥
जठै गंगा जठै काशी बठै इंसाफ कद आसी।
पसीनो कद धरा रै भाल रो सिणगार बण जासी॥
मिनख रो मोल बाकी है जगत रो जी रिझातो जा।
जठै इंसान रा आँसू बठै मोती लुटातो जा॥
मिनख रै हाथ में कांईं मिनख रा सांस गिणती का।
मिनख तो लाख की चूड़ी भरम का रंग सै फीका॥
कै टांडो एक दिन लदसी खड़्यो है काळ बिणजारो
नगारो कूच को बाजै कठै थारो कठै म्हारो।
कै गठड़ी पाप की थारी अठै हळकी बणातो जा।
जठै इंसान रा आँसू,बठै मोती लुटातो जा॥
मिनख रो मोल सेवा है जकै रै तीर बह जासी।
बठै इँसान तो कांईं खुदी भगवान आ जासी॥
धनी निर्धन नहीं कोई बठै दरबार है मोटो।
खुलैला सामनै खातो नहीं इंसाफ रो टोटो॥
जको तपसी वो ही पासी इसो खातो खतातो जा।
जठै इंसान रा आँसू,बठै मोती लुटातो जा॥
वतन आवाज देवै है गजब तूफान ऊठैला।
समंदर सूख जावैला धरा—आकास धूजैला॥
मिटैली अर्थ की पूजा धरम रा ढोंग घट जासी।
जमानो आ रैयो बेगो भरम री पोल खुल जासी॥
महल सूं झूंपड़ी मिलसी मिनख रा गीत गातो जा।
जठै इंसान रा आँसू,बठै मोती लुटातो जा॥