नर जेथि निमांणा, निलजी नारी,

अकबर गाहक बट अबट।

आवै तिणि हाटै ऊदावत,

वेचै किम रजपूत बट॥

रोजाइतां तणै नवरोजै,

जेथि मुसीजै जणो जण।

चौहटि तिणि आवै चीतोड़ौ,

पतौ खरचै खत्रीपण॥2॥

पडपंच दीठ वध लाज व्यापति,

खोटौ लाभ कुलाभ खरौ।

रज्ज वेचिवा नायौ राणौ,

हाटि मीर हमीर-हरौ॥

पिंड आपरै दाखि पुरसातण,

रह अणियाळ तणै बळ राण।

खत्र वेचियौ जठै वड खत्रिए,

खत्र राखियौ जठै खुम्माण॥

जासी हाट वात रहिसी जगि,

अकबर ठगि जासी एकार।

रहि राखियौ खत्री-ध्रम राणै,

सगळौ ही वरतै संसार॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण