सर्व जुगल तापसी हण्यो पार्श्वनाथ जिनेन्द्र।

णमोकार फळ लहीहुउ पथियडारे पद्मावती धरणेन्द्र॥

चोर जन सूळी धर्‌यो, श्रेष्ठि दियो णमोकार।

देवलोक जाइ करी, पथियडारे सुख भोगवे अपार॥

चारूदत्त श्रेष्ठि दियो घाला ने णमोकार।

देव भवनि देवज हुहो, सुखन विलासइ पार॥

ग्रह डाकिनी शाकिणी फणी, व्याधि वन्हिृ जळराशि।

सकल बंधन तूटए पथिय डारे विघन सवे जावे नाशि॥

चउवीसी अमत्र हुई, महापथ अनादि, सकलकीरति गुरू इम कहे,

पथियडारे कोई जाणइ, आदि जीवड लारे भव सागरि एह नाव॥

स्रोत
  • पोथी : सीखामणिरास ,
  • सिरजक : भट्टारक सकलकीर्ति