मजलां चालणियो ही पासी।

घर सूत्यो बो कादै खुत्यो, कद कटसी चोरासी

मजलां चालणियो ही पासी।

अरथ चालणै रो है जीणो, रुकणो ही मरणो है।

सोच-समझ कर निरणो ले तूं, पग आगै धरणो है।

बैठयां स्यूं सिर चढै मजल, अर चाल्यां चरणां-दासी।

मजलां चालणियो ही पासी।

मुरदां कनै मडांद फैलसी, फुलड़ा सोरम देसी।

न्याय-तराजू जग तोलैलो, कुण कमती? कुण बेसी?

सकमोः रै’सी हर पल ताजो, निकमो; बणसी बासी।

मजला चालणियो ही पासी

पलक बिछायां पंथ अडीकै, बां चरणां नै कद को।

जका ढूंढ लै छिप्यो किनारो, हद को अर बेहद को।

बां रै ही बळ-बूथै खुलसी, दुनिया री गळ-फांसी।

मजला चालणियो ही पासी।

स्रोत
  • पोथी : उजाळो थपक्यां देरयो ,
  • सिरजक : मुनि बुद्धमल्ल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास