मिनखां रो मन छोटो होग्यो।

गै’राई मिटणै तक आगी, चिंतन सारो खोटो होग्यो।

मिनखां रो मन छोटो होग्यो।

धरती सगळी है एक कुटम, बात सदा जो कैंता हा।

सुख-दुख सगळां रा एक साथ, अळगाव कोई सैंता हा।

बै भाव गया अब राई रा, दो रस्ता भाई-भाई रा।

बारै व्यापार घणो बधग्यो, पण भीतर में टोटो होग्यो।

मिनखां रो मन छोटो होग्यो।

पर-हित जीणो है, मरणो है, बातां पोथ्यां में रै’गी।

निज हित साधण रो मारग ल्यो, विधना यूं कानां में कै’गी।

परमारथ नै ऊंडो गाडो, जद ही गुड़कैला गाडो।

सूई सो मुं, पण कूई सो पेट घणो मोटो होग्यो।

मिनखां रो मन छोटो होग्यो।

पुरखां री चोखी सीखड़ल्यां, बरसां पै’ली रुलगी, मरगी।

सुकरित री सारी हरियाळी, ठाली-भूली बकरयां चरगी।

सो’ धरम-करम खूंटयां टांग्यो, भलपण रै बिरवै नै छांग्यो।

जीवन इमरत सो आछो, पाणी रो परपोटो होग्यो।

मिनखां रो मन छोटो होग्यो।

स्रोत
  • पोथी : उजाळो थपक्यां देरयो ,
  • सिरजक : मुनि बुद्धमल्ल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवम संस्कृति जनहित प्रन्यास