सबळ मेंगळ बादळ तणा सज करि,

गुहिर असमाण नीसाण गाजै।

जंग जोरै करण काळ रिपु जीपवा,

आज कटकी करी इंद राजै॥1॥

तीख करवाळ विकराळ वीजळि तणी,

घोर माती घटा घरर घालै।

छोडि वासां घणी सोक छांटां तणी,

चटक माहे मिल्यो कटक चालै॥2॥

तड़ातड़ि तोब करि गयण तड़कै तड़ित,

महाझड़ झड़ि करि झूझ मंड्यौ।

कड़ाकड़ि क्रोध करि काळ कटका कियौ,

खिण करै बळ खळ सबळ खंड्यो॥3॥

सरस वांना सगल कीध सजळ थळ,

प्रगट पुहवी निपट प्रेम प्रघळा।

लहकती लाछि वळि लील लोको लही,

सुध मन करै ध्रम शील सगळा॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : धर्मवर्धन उपाध्याय ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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