नरमळ जळ की मांछळी, तू थारो बोध जगा।

ऊपर तरबो छोड़, अबोधण ऊंडो गोत लगा।

मण-मण मोती, मण-मण मूंगा।

मणियां-माणक, सींपां-घूंघा।

सबको मुरतब नाळो-नाळो

मोल अमोलक महंगा-सूंघा।

जग की नजर भरम फैलावै, तू थारी सोध लगा।

तीरां मगर माछळा सारा।

भाई बन्धु कुटुम्बी थारा।

जीव-जीव का लागू भोळी।

लहरां यांकी, यांकी धारा।

पारावर पंगां मं ले लै, भीतर जोत जगा।

मन का नभ को दरपण छै यो।

खुद नै खुद ई, अरपण छै यो।

सीमा हीण पसारो को।

भरम भर्यो आकरसण छै यो।

तारण-तरण पछाण मरण, अमरत रस भोग लगा।

उपर तरबो छोड़, अबोधण ऊंडो गोत लगा।

स्रोत
  • पोथी : अेक घडी़ पाछै परभात ,
  • सिरजक : गिरधारी लाल मालव