आछौ अगंजी ताहरौ भालौ सारी प्रथी सीस ओपै,

ऊगा सूर ज्यूं ही सारी प्रथी बंदै आण।

सारी प्रथी तणी लाज भालै थारै अभैसिंघ,

प्रथी सारी भोग राळी हेकै भालै पांण॥1॥

गै-जूहां सिंधवां फोजां गरूठ तंबाळां गाज,

बाज गैलां खेहां ढंकै पूर बोमवाह।

बेहूं राही तणी नेकी राज रै छाडाळ बंधी,

राज रा छाडाळ तणै ओलै दुहुं राह॥2॥

रंगाचार बरूथां डंडाळां धूंस पड़ै रोड़,

अड़ीलां छंछाळां लौह लंगरां अपार।

कूंत रै भरोसै सारी खुरासाण जोखां करै,

कूंत रै भरोसै जोखां करै हिन्दूकार॥3॥

हरोळां तटाक पूर चंदोळां कदंबी हाथां,

संका कौ फोजां धरै राजा राणा सेव।

उभै थाटां तणी नेकी आज तो अजीतवाळा,

गांजै थारै आण वागी दूसरा गंगेव॥4॥

दसूं दिसा राजा थारै सेल री दुहाई दीजै,

थारै सेल साहू जिसा ओझकै अथाह।

सेल थारै नचीती दिली री सारी पातसाही,

सेल थारै नचीतौ दिली रौ पातसाह॥5॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : बरजूबाई ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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