साजन बीनती करूँ रे हर साल,

लसण सोयाबीन मत बा'

आपणी पीढियाँ होई रै कंगाल

लसण सोयाबीन मत बा'

खात बीज म्ह ग्हणै म्हलगी, मायड़ की सेलाणी

ग्याबण भैस्यां बेंची जद् दीख्यो धोरा म्ह पाणी

लूरो कर कर घसी लकीराँ हाथाँ की सब आछी

पाणत करतां करतां घुळ गी कदी न्ह मेंहदी राची

काळा कोयला सा होग्या गोरा गाल,

लसण सोयाबीन मत बा'

आफूणी का तस्कर कै घर जाणै रोज दुआळी

ज्याँनै खून पसीने करद्यो, व्ह लागै छै हाळी

सुण सुण भाव फसल को नंदराँ कोसां दूरै होगी

करजा की चंता म्ह काया दन दन हो री रोगी

थारा नांव पै लुट्यो रै घणो माल

लसण सोयाबीन मत बा'

ब्यायण म्हारो फोन काट्‌द्य कदी नै सूँळी बोलै

हर सावा पै मून ब्याई का मन की गाँठाँ खोलै

मँडी मँडाई लगन्याँ रहगी चढी बराताँ फरगी

बैरी भी न्ह करै असी बैरण खेती नै करदी

थारा जीव को य्हा होई जंजाळ

लसण सोयाबीन मत बा'

बैंक रात दन भरै चूमट्या मंड्या करै छळावा

बाण्यो गुलका करै नींद म्ह हाकम-चढै चढावा

बीमा हाळा लेबा आवै कदी आडै आवै

हलधर थारो राम धणी जग चूँट चूँट कै खावै

कतना काँवळाँ नै खैंची भारी खाल

लसण सोयाबीन मत बा

स्रोत
  • सिरजक : राम नारायण मीणा ‘हलधर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी