लागी रे लागी कुण की निजरां लागी।

रात-रात भर नींद नीं आवै बैठी रातां जागी

लागी रे लागी...

पैर ओढ बजारां निसरी, पैर कसुमल साङी।

मनै देखबा लोग लुगायां फिर गी आडी आडी।

सब जणियां कैवण ना लागी नार सुरंगी आगी

लागी रे लागी...

झाङा झपटा घणां दिराया किया टोटका भारी।

वैद डाक्टर घणां बुलाया कोन्या लागी कारी।

जीयो ऊछाळो खावै म्हारो देण केङी लागी।

लागी रे लागी...

अबै समझ में आई म्हारै नहीं अेकली जाऊं।

कोई नहीं टोकार लगावै काजळ तिलक लगाऊं।

संग पिया रै जाऊं बां रै बात समझ में आगी।

लागी रे लागी...।

स्रोत
  • पोथी : मारुजी लाखीणौं ,
  • सिरजक : कालूराम प्रजापति 'कमल'
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