आँखेंं मोरता रई ग्या

सपनं देखता रई ग्या

ज़ेम रातर आवी

समनी फूंकता रई ग्या

फूलं नी वाटे साली

हुरा घोंसता रई ग्या

छांइला मय बी जोवो

पोग बारता रई ग्या

रुख़ड़ा नं पानड़ं जेवा

वायरे उड़ता रई ग्या

भूक ज्यारे वदु लागी

दुख ने जमता रई ग्या

सबद आंकड़ा लई ने

दरद लकता रई ग्या

बरफ नं घरं ने बी मय

खोरीयु बारता रई ग्या

ठोंकरे लागी तारे

सेतरं झाड़ता रई ग्या।

स्रोत
  • सिरजक : महेश पांचाल 'माही' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी