ये करशा मित्र हमारे हैं॥

ये ईश्वर बिन और जांचै, इन शूं जांचै सारै हैं।

राजा कूं ईश्वर ज्यूं जानै, तो भी दीन दुखारै है॥

चोरी जोरी ठग ठकुराई,करै इन्हीं पै सारै हैं।

ये ओढ़न सब ही को देवै, डोलै आप उघारै हैं॥

ये खांवन सब ही को देवैं, रेवै सदा भुखारे हैं।

खान पान आसन औढन को, इन सो लेवै सारै हैं॥

पै इनकी कोई बात पूछै, दूरहि से धुधकारै हैं॥

सांप चोर भय राज बीज भय, ईत-भीत हू धारै हैं।

सगरै भय इनही पै लादै, भारै भय के भारै है॥

ये तो फिरै अंधारै वन में, हिंस्न जीव जहं सारे है।

इनही कै धन सौं नगरन में, भयै गैस उजियारै है॥

अन्न कमावै मरै अन्न बिन, तलफि तलफि तिय वारे है।

हा! धिक नर वे दया लावै, दीन बहू लखि हारै है॥

ये श्रम करै रात दिन सारै, बिन श्रम और डकारै हैं।

करुणा सिंधु हरो दुख इनको, ‘चातुर’ यही पुकारै है॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय